Posted by: Gautam B. February 7, 2007
-- चौतारी ४५ --
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जदौ मिष्टे! ल अर्को जगजीतको। मलाई त खुब मनपर्छ यो, नबुझिने उर्दू शब्दहरु धेरै भएपनि। शायद मैं जिन्दगीका शेहर ले के आ गया कातिलको आज अपने ही घर ले के आ गया ता उम्र ढुंढता रहा मञ्जिल मैं ईश्ककी अन्जाम ये कि गर्द-ए-सफर ले के आ गया नश्तर है मेरे हाथमें, कन्धों पे मयकदा लो मैं इलाज-ए-दर्द-ए-जिगर ले के आ गया "फाकिर" सनमकादेमें न आता मैं लौटकर ईक जख्म भर गया था इधर ले के आ गया
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