Posted by: ugeslimbu September 22, 2015
खजुराहो के मंदिर के अन्दर
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खजुराहो की मूर्तियाँ

अंग्रेज तो इसे गिरा देना चाहते थे। उन्हें लगता था कि ये मंदिर अश्लील हैं क्योंकि मंदिर की बाहरी दीवारों पर ही रति-क्रियाओं की विभिन्न मुद्राओं को दर्शाती हुई मूर्तियां हैं। बहुत सारे छोटे-छोटे मंदिरों को उन्होंने गिरा दिया, लेकिन देश के सबसे शानदार मंदिरों में से एक- खजुराहो मंदिर को वह नहीं गिरा पाए। शायद अंतिम समय में हुई एक तरह की हिचक ने इस मंदिर को बचा लिया। नहीं तो वे इस मंदिर को भी गिरा चुके होते और गिराने की वजह सिर्फ यह होती कि मंदिर की दीवारों पर मैथुन मुद्राओं को दर्शाती हुई तस्वीरें हैं। धर्म के नाम पर एक तरह की दिखावटी लज्जा दुनिया भर में फैल चुकी है। जो लोग इसे पाप कहते थे, वही लोग इस धरती के सबसे असंयमी और कामुक इंसान बन गए।

लेकिन इस संस्कृति ने लज्जा का दिखावा करना कभी नहीं जाना। खासतौर पर चंद्रवंशियों ने अपने जीवन के बारे में कुछ भी नहीं छिपाया। उन्हें लगता था कि इंसानी शरीर में ऐसा कुछ भी नहीं है जो छिपाने लायक हो या जिस पर इंसान को शर्म आनी चाहिए। हां, इतना अवश्य था कि उनका धर्म उन्हें नियंत्रण से बाहर नहीं जाने देता था।

उनका धर्म यह था कि अगर आप ‘यह’ हासिल करना चाहते हैं, तो आपको ‘यह’ करना होगा। अगर आपको राजा बनना है, तो आपको अपनी जिंदगी ऐसे जीनी चाहिए। अगर आपको एक गृहस्थ जीवन जीना है तो आपको जिंदगी ऐसे जीनी चाहिए। आपने जो भी लक्ष्य तय किया है, उसकी कामयाबी के लिए उन्होंने तरीके तय कर दिए। इसके लिए नैतिकता के सहारे की कोई बात नहीं की। आपको यह समझना होगा कि यह एक संस्कृति है, जिसमें कोई नैतिकता नहीं है। भारत में कोई नैतिकता नहीं है। भारत एक देश के रूप में या एक संस्कृति के रूप में अगर एक सूत्र में बंधा हुआ है तो वह चेतनता की वजह से बंधा हुआ है।

कामुकता मानवता का एक हिस्सा है

तो कामुकता हमेशा से मानवता का एक हिस्सा रही है। इसी वजह से आज हमारा अस्तित्व है। अगर गुफा में रहने वाले मानव ने इसे त्याग दिया होता तो आज हम नहीं होते। यह हमेशा से है और रहेगी, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि यह आपकी चेतना पर हावी हो जाए। अगर यह चेतना पर शासन करने लगेगी, तो आप एक ऐसे मजबूर प्राणी बन जाएंगे कि आपके और किसी जानवर के बीच कोई फर्क ही नहीं रह जाएगा। आप महज एक जैविक प्रक्रिया बन जाएंगे। आपके भीतर किसी और चीज का अस्तित्व ही नहीं रह जाएगा।

बात बस खजुराहो की ही नहीं है, हर मंदिर की बाहरी तरफ इस तरह की कम से कम एक कामोत्तेजक तस्वीर होती है। लेकिन कहीं भी मंदिर के भीतर इस तरह की कामोत्तेजक सामग्री नहीं पाई जाती। यह हमेशा बाहरी दीवारों पर ही मिलेगी। इसके पीछे विचार यह है कि अगर आप यह महसूस करना चाहते हैं कि भीतर क्या है तो आपको अपनी भौतिकता या शारीरिक पहलू को यहीं छोड़ देना होगा। शारीरिक पहलू आसान होते हैं, ये बाहर ही हैं।

लेकिन जो भी उसके परे है, वह तब तक उतना वास्तविक महसूस नहीं होता जब तक कि वह आपके अनुभव में न आ जाए। तो ऐसे हर संभव साधनों का निर्माण किया गया, जिन्हें भौतिकता को कम करने में प्रयोग किया जा सके और उच्चतर संभावनाओं के प्रति आपको ज्यादा संवेदनशील बनाया जा सके। बस इसी तरह से ये सारे तरीके अस्तित्व में आए। किसी भी चीज को अस्वीकार नहीं किया गया।

ठंडे पानी से स्नान करने के बाद आपकी भौतिकता कम हो जाती है, इसीलिए हर मंदिर में ठंडे पानी का एक सरोवर होता है जिससे कि आप उसमें डुबकी लगा सकें और मंदिर में जाने से पहले आपके भीतर की भौतिकता हल्की हो जाए और वहां आप कुछ खास तरह के अनुभव कर सकें।

खजुराहो एक और बात दर्शा रहा है कि कामुकता केवल बाहर होती है। प्रवेश करने से पहले आपको अपनी कामुकता को, अपनी भौतिकता को नीचे लाना चाहिए, नहीं तो आपको कुछ भी अनुभव नहीं होगा। आप बस मुंह बाए देखते रह जाएंगे। मंदिरों को आपके विकास और बेहतरी के लिए एक पूरी प्रक्रिया से बनाया गया।

जब आप बाहरी घेरे में जाते हैं, तो आपको सारी कामोत्तेजक सामग्री नजर आती है। जितना देखना चाहते हैं, देखिए। अगर यह सब आपके मन पर बहुत ज्यादा छाया हुआ है तो मंदिर के भीतरी हिस्से में प्रवेश न करें। 

आपको यह समझना होगा कि यह एक संस्कृति है, जिसमें कोई नैतिकता नहीं है। भारत में कोई नैतिकता नहीं है। भारत एक देश के रूप में या एक संस्कृति के रूप में अगर एक सूत्र में बंधा हुआ है तो वह चेतनता की वजह से बंधा हुआ है।
वापस घर जाइए और जो करना है कीजिए और तब लौटकर आइए। बाहरी हिस्से को भरपूर देख लेने के बाद जब आपको महसूस हो कि अब आप तैयार हैं तब आपको अंदर जाना चाहिए। अगर बाहरी क्षेत्र को देखने से आपकी तृप्ति नहीं हुई है और अगर आप अंदर चले भी गए, आंखें बंद करके बैठ भी गए तो भी आपको ईश्वर के दर्शन नहीं होंगे। आप यही सोचते रहेंगे कि महिलाओं वाले हिस्से में क्या हो रहा है। ऐसा ही होगा। बहुत से लोग मंदिर इसलिए जाते हैं क्योंकि वहां बहुत सारी महिलाएं जाती हैं। चूंकि बहुत सी महिलाएं वहां जा रही हैं, इसलिए बहुत से पुरुष वहां जा रहे हैं। मंदिरों में महिलाओं के जाने पर पाबंदी लगा दीजिए, फिर देखिए कैसे पुरुषों की संख्या में भी गिरावट आ जाती है।

खजुराहो के मंदिर के अन्दर

अगर आप मंदिर के भीतर भी जाते हैं, तो वहां भी एक लिंग है, जो कि कामुकता का ही एक प्रतीक है, लेकिन यहां इसे आप पूरी तरह से एक अलग ही नजरिये से देख रहे हैं। जब तक शरीर से आपकी तृप्ति न हो जाए, आप मंदिर के बाहर ही समय बिताइए। जब मन भर जाए तो अंदर जाइए। इस तरह जो मिलन होगा, वह पूरी तरह से अलग तरह का होगा। यह कोई भौतिक मिलन नहीं होगा।

तो इस तरह मंदिरों को एक पूरी समझ और आध्यात्मिक प्रक्रिया की तरह बनाया गया है। यह एक ऐसी संस्कृति है, जो सही या गलत के बारे में नहीं सोचती है, यह जीवन को उसी रूप में देखती है, जैसा वह है। जीवन को उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखिए, हम इसे उत्सव की तरह नहीं मना रहे हैं, न ही हम इसे गंदा कर रहे हैं। न तो हम इसे पुण्य बना रहे हैं, न पाप। हम तो बस कुछ कह रहे हैं। गौर से देखिए यही आपकी जिंदगी की वास्तविकता है। सोचिए कि क्या आप इससे एक कदम आगे जा सकते हैं?
प्रशन:
लेकिन यह सब चारदीवारों के भीतर किया जाना चाहिए। इसे इतना सार्वजनिक करने की क्या जरूरत है?
सद्‌गुरु:
आपसे कोई नहीं कह रहा है कि यह सब आप सडक़ों पर करें। उच्चतर संभावनाओं के लिए मंदिर एक यंत्र की तरह है। इसीलिए इस तरह के संकेत बनाए गए। ये सब चीजें बाहर छोड़ दी जानी चाहिए। इन सभी मूर्तियों के साथ आप एक निश्चित समय बिताइए, इनकी सीमाओं को देखिए। इसके बाद जब आप मुख्य मंदिर में प्रवेश करेंगे तो आप इन सब चीजों से मुक्त होंगे। इन चीजों को इसी मकसद से बनाया गया था। तो सही नीयत के साथ इनका प्रयोग कीजिए, अपनी खुद की नैतिकता के हिसाब से मत चलिए।

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