Posted by: ugeslimbu September 22, 2015
श्रीकृष्ण कहते ही हे अर्जुन यह प्रकाश मेरे ही शरीर का विस्तार हे
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निराकार भगवान की प्राप्ति श्रेष्ट हे अथवा साकार की ?

निराकार की प्राप्ति से कठिन साकार की प्राप्ति हे । निराकार अर्थात ब्रह्मज्योति जो इस सृष्टि के बाहर हे किन्तु परमधाम के निचे हे । निराकार न बोल सकता हे न हिल सकता हे न ही देख सकता ही हे अतः जो भी निराकार का ध्यान अथवा निराकार ने लीन होना चाहते हे उन्हें भी समान अवस्था प्राप्त हो जाती हे अर्थात न बोल सकते हे न हिल सकते हे जैसे एक वृक्ष जो एक जगह पर टिका रहता हे न बोल सकता हे न देख सकता हे जैसे नलकूबर और मनिग्रिव कई हजारो लाखो वर्षोतक वृक्ष यानिमें अर्थात जड़ अवस्था में रहे किन्तु जो साकार का ध्यान करते हे वे उसी अवस्था को प्राप्त हो जाते हे अर्थात जो कृष्ण को भजते हे वे कृष्ण के परमधाम गोलोक में चले जाते हे और कृष्ण जैसा ही सुंदर वेश अविनाशी पंचमहाभूतोंसेरहित शरीर प्राप्त करते हे,जो विष्णु को भजते हे वे परमधाम वैकुण्ठ की प्राप्ति करते हे और विष्णुके समान चतुर्भुज अविनाशी शरीर प्राप्त करते हे । किन्तु ये दोनों लोक निराकार ब्रह्मज्योति से ऊपर हे । 
हरिवंश पुराण में ब्रह्मज्योति के विषय में कहा गया हे - जब महा-विष्णु कृष्ण तथा अर्जुन को देखने हेतु स्वयं द्वारका के ब्राह्मण के बालकोंका हरण करते हे और अर्जुन की ब्राह्मण के नौए बालक को बचाने की प्रतिज्ञा टूट जाती हे और अर्जुन अपने आपको अग्नि को समर्पित करने ही जाते हे तब उसे भगवान श्रीकृष्ण रोकते हे । कृष्ण अर्जुन सहित अपने स्वांश महा-विष्णु जिनसे समस्त ब्रह्माण्ड उत्पन्न होते हे उनके धाम की यात्रा करते हे जब वे दोनों सृष्टि के सभी आवरणोंको पार कर जाते हे तब उस ब्रह्मज्योति में पहुच जाते हे जिसमे निराकार का ध्यान करने वाले योगी लीन होते हे,उस समय अर्जुन की आखे उस तेज को सहन नहीं कर पाती तब उसे सांत्वना देते हुए भगवान श्रीकृष्ण कहते ही हे अर्जुन यह प्रकाश मेरे ही शरीर का विस्तार हे अर्थात उनके शरीर का तेज हे ।
अर्थात जैसे सूर्यप्रकाश सूर्य के अधीन हे वैसे ही निरकार ब्रह्म भी साकार कृष्ण के अधीन हे कृष्णरूपि सूर्य का प्रकाश हे ।

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