Posted by: _____ June 23, 2013
नेपाली मजदूरों के साथ ये कैसी हैवानियत!
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नेपाली मजदूरों के साथ ये कैसी हैवानियत!




ओमप्रकाश भट्ट
गोपेश्वर ।। एक अफवाह के बाद केदारनाथ से जान बचा कर वापस लौट रहे नेपाली मजदूरों की जान पर बन आई है। जंगलों और चोटियों से बच कर आए नेपाली जैसे ही सोनप्रयाग से आगे सीतापुर, रामपुर, बामसू और फाटा आ रहे हैं, तो हर जगह उनकी तलाशी ली जा रही है। गोद में छोटे-छोटे बच्चों को लिए चार दिन से भूखे प्यासे इन नेपाली मजदूरों को लाइन में खड़ा कर उनके कपड़े तक उतारे जा रहे हैं। ये वही नेपाली मजदूर हैं, जिनके सहारे गौरीकुंड से आगे केदारनाथ की यात्रा चलती थी। सोनप्रयाग से गुप्तकाशी के बीच यह वाकया हर जगह नजर आ रहा है।
हालांकि इस इलाके की किसी भी पुलिस चौकी से इसकी पुष्टि नहीं हुई है। न ही पुलिस ने इस तरह के आदेश दिए हैं। कुछ स्थानीय लोग नेपालियों को देखते ही पुलिसिया अंदाज में यह सब कर रहे हैं। मजदूरों का कहना है कि हमारी महीने भर की कमाई छीनी जा रही है। फाटा में हेलिपैड पर तैनात सब इंस्पेक्टर ने नेपाली मजदूरों से लूटपाट की घटना को खारिज किया है। उन्होंने बताया कि पुलिस के पास केदारनाथ में स्टेट बैक की करीब सवा करोड़ रुपये रकम है, जो केदारनाथ से यहां लाई गई है। लूट की किसी भी घटना की फाटा में कोई रिपोट नहीं है।
केदारनाथ में 6 हजार से ज्यादा मजदूर थे जो गौरीकुण्ड से लेकर केदारनाथ के 14 किमी के रास्ते पर तीर्थयात्रियों को डोली पालकी और ढंडी-कंडी में रखकर केदारनाथ के दर्शन कराते हैं। पैदल मार्ग में यात्रियों को पीठ-कंधे और घोड़े खच्चर पर ले जाने वाले इन मजदूरों में नेपाली मूल के सबसे ज्यादा मजदूर हैं। इसके अलावा कश्मीरी और लोकल मजदूर भी बड़ी तादाद में हैं। इनमें से भी कई सौ इस हादसे में जान गंवा चुुके हैं। बचे हुए मजदूर बुधवार से जंगल के रास्ते सोनप्रयाग आने लगे। अब तक 2 से 3 हजार मजदूर इन रास्तों से लौट आए हैं। बुधवार को इस इलाके में लूटपाट और चोरी की अफवाह के चलते नेपाली मजदूरों की पिटाई का सिलसिला जारी है।
नंद बहादुर की दास्तां : केदारनाथ में पुल के पास एक छोटे से ढाबे से आजीविका चलाने वाले नन्द बहादुर कहते हंै कि तीन दिन जंगलों से बचते हुए जब सोनप्रयाग पहुंचे तो यहां राहत देने के बजाय गाली-गलौज और मारपीट ने और डरा दिया। इससे अच्छा केदारनाथ में दब जाते तो कम से कम जलील होने से तो बच जाते।
केदारनाथ से जान बचाकर अपने बच्चों के साथ लौट रहे नेपाली परिवारों को भी इसी तरह जलील किया जा रहा है। 4 महीने की बेटी गोद में उठाए और 3 साल के लड़के के साथ वापस आई तारा कहती है इतना दुख जंगल में 3 दिन तक भूखे प्यासे बच्चों को ले जाते हुए नहीं हुआ जितना सीतापुर से लेकर गुप्तकाशी में जगह-जगह तलाशी के नाम पर हो रहे व्यवहार से हुआ।
http://navbharattimes.indiatimes.com/india/national-india/nepali-worker-how-monstrous-it/articleshow/20718406.cms
 
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