Posted by: subrath May 31, 2010
Sorry it's in Hindi: but thought it's an inspiring one!!1
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truly inspired


source :http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2010/05/100529_iit_sc_dps.shtml


कानपुर स्थित यशोदानगर की गंगा विहार कालोनी ग़रीबों की बस्ती है. इसी बस्ती में रहते हैं मोची राजेन्द्र प्रसाद जिनके अठारह साल के बेटे अभिषेक भारती ने आईआईटी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में सफल होकर एक मिसाल क़ायम की है.


उन्होंने अनुसूचित जाति श्रेणी में 154 वां स्थान हासिल किया है.


घर के नाम पर दस गुना दस फुट का एक कमरा है. इसी एक कमरे में राजेंद्र प्रसाद, पत्नी संगीता और उनके चार बेटे रहते हैं.


कमरे के बीच में एक दरवाजा है, जो एक छोटे से आँगन में खुलता है. एक रस्सी पर कपड़े टंगे हैं. दरवाजे से दाहिनी तरफ एक तख्त है, जिसमें वे सब अखबार बिखरे हैं, जिनमें अभिषेक की कामयाबी की खबर मोटे-मोटे अक्षरों में छपी हैं.


तख्त से सटा एक बड़ा सा बक्सा रखा है. दरवाजे के बाएँ तरफ दीवार से सटाकर गैस सिलिंडर और चूल्हा रखा गया है जिसके बगल में एक पुरानी सिलाई मशीन रखी है.





शुरुआत में तो मुझे नहीं पता था कि यह आईआईटी क्या होता है, मगर इंटर फर्स्ट ईयर में मेरे एक सर संदीप गोयल ने कहा कि आईआईटी भारत का एक टॉप का इम्तिहान होता है, तब मेरे मन में भी लगन लगी कि मुझे यह इम्तिहान पास करना है.


अभिषेक भारती


ये सिलाई मशीन परिवार की अतिरिक्त आमदनी का ज़रिया तो है ही, यही अभिषेक के लिए पढ़ाई की मेज का काम भी करती है.


बगल के घर में बिजली है, मगर अभिषेक के माँ-बाप के पास इतना पैसा नहीं कि कनेक्शन ले सकें, इसलिए अभिषेक और उसके तीनों भाई लालटेन की रोशनी में ही पढ़ाई करते हैं.


अभिषेक कहते हैं, “शुरुआत में तो मुझे नहीं पता था कि यह आईआईटी क्या होता है, मगर इंटर फर्स्ट ईयर में मेरे एक सर संदीप गोयल ने कहा कि आईआईटी भारत का एक टॉप का इम्तिहान होता है, तब मेरे मन में भी लगन लगी कि मुझे यह इम्तिहान पास करना है.”


पढ़ाई में बाध्यता ठीक नहीं


अभिषेक कहते हैं, “मैं रोज लगभग सात-आठ घंटे पढ़ाई करता था. लेकिन मैंने कोई शेड्यूल नहीं बनाया कि इतने घंटे फिजिक्स, केमिस्ट्री या मैथ ही पढ़ना है, क्योंकि कोई बाध्यता होने से पढ़ाई में मज़ा नहीं आता. और मज़े के बिना आईआईटी नहीं निकलती.”



अभिषेक भारती

घर में बिजली नहीं होने से अभिषेक और उसके भाई लालटेन की रोशनी में ही पढ़ते हैं


अभिषेक अपनी इस सफलता में भाभा कोचिंग को श्रेय देना नहीं भूलते, जिसने उन्हें मुफ्त में पढ़ाया.


अभिषेक के गणित के टीचर संदीप गोयल ने बताया कि उसके अंदर किसी विषय को समझने और सवालों को अपने ढंग से हल करने की विशेष क्षमता है.


अभिषेक आगे चलकर अंतरिक्ष विज्ञान पढ़ना चाहता है और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम उसके आदर्श हैं. मगर अभिषेक की दिलचस्पी राजनीति में बिलकुल नहीं है, क्योंकि उसके मुताबिक उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफ़ी ज़्यादा भ्रष्टाचार है.


दिहाड़ी मजदूरी भी की


माँ संगीता के मुताबिक़ अभिषेक को ऐसी धुन लगी कि वह पढ़ने के सिवाय किसी खेलकूद या मनोरंजन आदि में बिलकुल ही दिलचस्पी नहीं लेता.





यकीन ही नहीं हो रहा है कि ऐसा हो सकता है या हो चुका है. यह सब कुछ किसी सपने जैसा लगता है.


संगीता, अभिषेक की मां



हाँ, जब कभी पढ़ाई के लिए पैसों की जरुरत हुई तो किसी दुकान या शो रूम में दिहाड़ी मजदूरी कर लेता.


बेटे की इतनी बड़ी उपलब्धि से माँ संगीता काफ़ी गदगद हैं. लेकिन उनको अब भी यह सब हकीकत के बजाय किसी सपने जैसा लगता है.


संगीता कहती हैं, “यकीन ही नहीं हो रहा है कि ऐसा हो सकता है या हो चुका है. यह सब कुछ किसी सपने जैसा लगता है.”


संगीता इंटर पास हैं, सिलाई उनका शौक है और आमदनी का ज़रिया भी. पिता राजेंद्र प्रसाद इंटर पास हैं. मगर कोई नौकरी नहीं मिली, मज़बूरी में जूता पालिश का पुश्तैनी धंधा करते हैं.


पिता के लिए गौरव


राजेन्द्र प्रसाद से मेरी मुलाक़ात किदवई नगर चौराहे पर उनकी मोची की दुकान पर ही हुई. मगर राजेन्द्र प्रसाद अब साधारण मोची नहीं. बेटे की उपलब्धि से समाज में उनकी इज़्ज़त बढ़ गई है.



अभिषेक के पिता

गरीबी रेखा के नीचे बसर करने वाले अभिषेक के परिवार को बीपीएल कार्ड भी नहीं मिला


राह चलते लोग अब बड़े सम्मान से इशारा करके दूसरे को बताते हैं, यह वही मोची है, जिसके बेटे ने आईआईटी पास किया है.


राजेन्द्र प्रसाद के मुताबिक मैंने बेटे को बस यही समझाया था, "देखो! तुम्हें यह बूट पालिश का काम नहीं करना है."


राजेंद्र प्रसाद के मुताबिक़ उन्होंने और उनकी पत्नी ने ही अभिषेक की पढ़ाई का सारा बोझ उठाया. इस काम में किसी रिश्तेदार, नेता या सरकार से कोई मदद नहीं मिली.


यहाँ तक कि राजेंद्र प्रसाद को गरीबी रेखा के नीचे का बीपीएल कार्ड भी नहीं मिला. उनका अपना मकान तक नहीं है.


राजेन्द्र प्रसाद को अपने बेटे की उपलब्धि पर गर्व है. इतने पत्रकार, फोटोग्राफर और टीवी चैनल वाले आए. मगर घर में केबल टीवी चैनल न होने से वह खबरें देख नहीं पाए.


अब अभिषेक शायद मेरी यह रिपोर्ट भी न देख पाए, क्योंकि उसके घर पर कंप्यूटर नहीं है, वह साइबर कैफे भी नहीं जाता और न ही अभी तक उसने अपना ई-मेल का पता बनाया है.

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