Posted by: Madness December 22, 2009
~चौतारी १६९~
Login in to Rate this Post:     0       ?        

देहात से लहरे भैयाको लागि लिखेको गना कविता (यहि गना हमि बाइदमे जुटुब मे आँपलोड कर्छ)


हमरो बिहे भएन


जवानिके गना हुजुर हमि गावने पाएन


कथि करने आइज तक हमरो बिहे भएन


 


बाप बुह्रो केले पनि हमरो दुखके बात बुझेन


अकेले लरकि कैसन ढुँढने हमिलाई केले सुझेन


यार दोस्त सब शादि बनायो सुहागरात भि मनायो


हमरो जवानिपे हुजुर अइब तो सला बुढापा गनायो


 


सुन्द्री सुन्द्री लरकि हमको अंकल बोलके बोलावँछ


कनपटियाके सफेद बाल हमरो बुह्रापेके पोल खुलावँछ


शादि हुन्थ्यो त सुसरा छोरा परथियो दस किलास


हमरो सुखा जवानिपे सिर्फ अब् छ हुजुर शराबके गिलाँस 


 


जवानिके गना हुजुर हमि गावने पाएन


कथि करने आइज तक हमरो बिहे भएन


खेँ खेँ खेँ


जे राम जि कि।


 


 

Last edited: 22-Dec-09 10:01 AM
Read Full Discussion Thread for this article