Posted by: Birkhe_Maila September 22, 2009
~चौतारी १५९ दशै स्पेसल्~
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गन्नुभाई - "अबे काणा! अबे लंगडे! अबे रंगिला! अबे सब के सब भुतनिके किधर मर गए?"

रिठे काणा- " भाई अपुन ईधरिच है!"

गन्नुभाई- "तो काहेकु टेटुवाँ दबे कबुतरके माफिक चुप बैठेला है? जुबानको किडे खा गए क्या?"

रिठे काणा- "भाई वो अपुन चौतारी देखरेला था!"

गन्नुभाई - "एकता कपुर फिर से नवाँ सिरियल बनाई क्या?"

रिठे काणा- "नक्को भाई, अपुन सिरियल नक्को देखरेला था, अपुन तो अपुनका वो पब्लिक लोग जमा होनेवाला चौतारी देखरेला था!"

गन्नुभाई- " बोल् क्या होरेला है उधर?"

रिठे काणा- "कुछ खास नक्को भाई, हफतेभर चौतारी जंग लगे तालेवालि सन्दुककि माफिक बन्द पडेला था!"

गन्नुभाई - "काहे कु रे?"

रिठे काणा - "भाई वो बोरिवलि से सिधा जाके पतलि गलिके सामनेवाला साझावलिका एरिया है न, उधरका बाँस कोई सानभाई करके है,उसका कोई खोलि रखनेका साँरवरका लफडा होगेला था और.....!"

गन्नुभाई- "चुप बे साले छुछन्दरकि दुम,बिगडेले रेडियोकि माफिक कबसे बकेजारेला है!भेजा मे कुछ घुसनेको मांगता न तेरि टाँयटाँय? साला बिन सास लिए बोले जारेला है बोले जारेला है!घुसादुँ क्या अख्खा घोडा तेरि सडेलि मुहपे?"

रिठे काणा- "भाई व्..वो..साँरि भाई!"

गन्नुभाई- "अब मेरे कु समझा तु, यह दुसरा भाई किधरसे आगेला है?"

रिठे काणा- "भाई वो सानभाई तो साझावलिका डाँन है भाई!"

गन्नुभाई- " कनपटिपे सुराख बनानेको माँगता तु भुतनिके? अपुनका नमक खाके अपुनिचके सामने दुसरेको डाँन बोलता है रे तु?

रिठे काणा- " स..साँरि भाई!"

गन्नुभाई- " अब बोल् साँरवर बोले तो?"

रिठे काणा- " भाई साँरवर  बोले तो....साँरवर बोले तो...भाई वो तो अपुनको भी मालुम नक्को!"

गन्नुभाई- "साला मवाली अंग्रेजी पढनेके टेमपे छमियाका मुजरा देखनेका था न तेरेकु तो साँरवर कैसे मालुम होएंगा? ठिक है त्...."

रिठे काणा- "भ्...भाई वो.."

गन्नुभाई- "अबे फटेलि साँप कि बिन,जब अपुन गन्नुभाई बोलरेला है तो बिचके काहेकु किडेलगे थोबडेसे बोलरेला है तु? बक क्या बकनेका है?"

रिठे काणा- "भाई छमियाका नक्को!"

गन्नुभाई- " अबे ठिक से बोल्, समझाके बोल् छमियाका क्या नक्को?"

रिठे काणा- "भाई अपुन बोलरेला था कि अपुन छमियाका मुजरा देखनेको नक्को जाता था, अपुन तो धन्नोका मुजरा देखनेको जाता था हेँख हेँख हेँख!"

गन्नुभाई- " देख अपनिईच बेजैतिपे कैसे बत्तिसि दिखारेला है साला मोटा भेजा!"

रिठे काणा- " "

गन्नुभाई- "चल हर्के रंगिलाको बुला उसको पुछेंगा अपुन कि ये साँरवर क्या होएंगा!"

रिठे काणा- "भाई रंगिलाको गावँ गएला है!"

गन्नुभाई - "गावँ गएला है? साला कितना गावँ जाता है वो! चल सैरियल लंगडाको बुला, वो जानता है अंग्रेजी!"

(सैरियल लंगडाको बुलानेके बाद)

गन्नुभाई- " तु बोल लंगडे ये साँरवर बोले तो क्या है?"

सैरियल लंगडा- "भाई साँर्व बोले तो साँर्व करनेका, जैसे अपुन आपको ड्रिङ्क साँर्व करता है न वैसेइच साँर्व करनेका!तो जो साँर्व करता है वहिच साँर्वर है!"

गन्नुभाई- (रिठे काणाकि तरफ देखते हुवे)" सुन् बे मोटे भेजे! इत्ति सि बात साला तु नक्को समझा रे! साँरवर बोले तो साँर्व करनेका, बोले तो चायवाला! काहे का डाँन है रे वो सानभाई? डाँन एक चायवालेके लफडेमे पडगेला हा हा हा!"

सैरियल लंगडा- "???!.. साँर्वर..भाई वो वाला..."

गन्नुभाई- "क्या? साँरवर बरोबर बताया न तु मेरेकु?"

सैरियल लंगडा- "भाई बतानेकु तो बरोबर बताया पन्..."

गन्नुभाई- "पन क्या? अब तु भि भेजा मत खा, जल्दि से मेरा साँरवर बन और एक ड्रिङ्क बना? चायवालेका डाँनके साथ लफडा! ज्यास्ति डरके मारे इत्ति सि बातका बतंगड बनाता है! ड्रिङ्क बना रे जल्दि! "

Last edited: 22-Sep-09 10:53 AM
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