Posted by: Birkhe_Maila January 27, 2009
~ * चौतारी १३८ *~
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रिठे काणा- "गन्नुभाई गन्नुभाई!"


गन्नुभाई- "अबे छिपकलीके दुम काहेकु सरकटे बकरेकि माफिक मिमियारेला है, अपुन इधरइच है!"


रिठे काणा- "भाई भुचाल आगेला है!"


गन्नुभाई- "अबे टमाटरके आखिरि दाने, सुब्बोसे अपुन इधर खोलिमे पडा बैठेला है एक तिनका तक नक्को हिलेला है भुचाल आएला बोलरेला है, दुँ क्या पिछवाडेपे कस के?"


रिठे काणा- " भाई आप भि, अपुन वो मकान गिरनेवाला भुचाल नक्को बोलरेला है, अपुन बोलरेला था कि चौतारी करके जो पब्लिक लोगका अड्डा था उधरको भुचाल आगेला है!"


गन्नुभाई- "अबे बरेलीके फटि हुइ बाँसुरी,काहेको बेसुरा बजरेला है, सिधे सिधे बक्!"


रिठे काणा- "भाई उद्धर चौतारीपे नवाँ नवाँ छोकरा और आइटमलोग बहुत आगेला है, और बोले तो अपना सैरियल लंगडाके दिलपे भुचाल आगेला है!"


गन्नुभाई- "अबे काजुके निचले हिस्से,नवाँ छोकरा छोकरि आगेला तो लंगडाका पैर ठिकहोगेला क्या? उस नासपिटेका दिलपे भुचाल काहेकु आया?"


रिठे काणा- "भाई वो लंगडा और हर्के रंगिला बोलरेला था कि,अब चौतारीपे आप जैसे बुड्ढे लोगोँ कि बाट लगेंगा!"


गन्नुभाई- "क्या? क्या बोला वो किचडके स्लामडाँग?"


रिठे काणा- "वहिच बोला भाई, और तो और बोलरेला था कि, गन्नुभाई का जमाना तो गेला हि गेला, भाई अपुनको तो लगरेला है कि वो आपकि गेम बजानेका सोचरेला है!"


गन्नुभाई- "वो काला बैगन तो खलास अब्!आज तक लोग बोलता था कि सैरिल लंगडा है, कलसे पब्लिक बोलेंगि कि सैरियल लंगडा हुवा करता था!"


रिठे काणा- " आप ठिक भोला भाई, अपुनने तो आपका नमक खाया है भाई गद्दारी नक्को करनेका,वहिच सोचके अपुन सैरियल लंगडा और हर्के रंगिलासे पंगा लेके इधरको आया भाई। अपुन इधर आएला है सोचके उसके दिलपे भुचाल आगेला है!"


गन्नुभाई-" अबे भुकम्पपे उजडि हुवि इमारत्,अपुन क्या सेवेन्टिजका गब्बर सिंह है जो साला तु नमक खानेका बात कररेला है? अबे भुतनि के, अपुनके पैसे से साला ताजपे जा के बाँरगार पिज्जा खाता है और बोलरेला है कि नमक खाएला है! तेरेकु को देखुंगा पहले वो दो छुछन्दरके दुमका गेम बजाता है अपुन। तु गाडि निकाल और दिप हठेलाको फोन लगा, अपुन अब्बिच के अब्बिच चौतारीमे जानेको मांगता, एक जदउ पब्लिकको ठोकनेको मांगता और दोनो के दोनोको उधरइच खल्लास करनेको मांगता!


रिठे काणा- " "


गन्नुभाई- "अबे अब् तेरि सिट्टि पिट्टि काहेकु गुम होगेलि है? फोन लगा अब्बि दीप हठेलाको!"


रिठे काणा- "ज् ज् जी भाई लगाता है न अपुन!"


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