Posted by: Birkhe_Maila November 18, 2008
~ * चौतारी १३५ *~
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रिठे काणा- "गन्नुभाई गन्नुभाई!"

गन्नुभाई- " अबे काहे कु,चोट लगे कुत्तेकि माफिक हाँफरेला है? तेरि नानि मरगेलि क्या?"

रिठे काणा- " भाई कोइ दुसरि पारटिके भाईलोग आगेला है, बोलरेला है कि गन्नुभाईकि खोलि कि ऐसि कि तैसि!"

गन्नुभाई- "अबे छुछन्दरकि दुम, ये कौन आगेला रे अपुन कि कम्पनिके साथ पंगा लेनेकु?"

रिठे काणा- "मालुम नक्को भाई, इधर भाईकि गैंगमे आनेकु खोजरेला था, पन उसको अपुन लोगनका अस्टायल बोले तो तरिका अछ्छा नक्को लगा।

गन्नुभाई- 'तो?"

रिठे काणा- " तो भाई उसने बगावत कर दि भाई!"

गन्नुभाई- 'अबे बुझरेलि आरतीके दिए,बगावत करने कु पहले अपुनकि गैंगमे होनेको मांगता न?"

रिठे काणा- " नहिँ भाई,वो बोले तो दुसरि गैंग बनारेला है! अब्बि अपुनका छोकरा छोकरि लोग उसकि बैन्ड बजारेला था, पन लगता है भाई दुसरि लोग उसके साइडमे होरेला है!"

गन्नुभाई- ' उसकि गैंग बनता है तो बननेको देनेका, अपुनको कोइ लेना देना नक्को है रे!"

रिठे काणा- " वहिच बोला भाई, पन भाई अपुनको कुछ कुछ डर लगरेला है, कोइ कुछ कर तो नहिँ सकता न अपुनकि गैंगको?"

गन्नुभाई- "अबे काहेकु कटनेवाले बकरेके माफिक मिमियारेला है, कोइ कुछ नहि करसकता अपुनकि गैंगको, कुछ कर भि देंगा तो साला एक दो बाल काटेंगा,(दाँत दिखाते हुवे) वैसन बाल तो अपुनलोगके अख्खि बाँडिमै उगरेला है!

रिठे काणा- (और  भि ज्यादा दाँत दिखाते हुवे) हेँख.. हेँख ..हेँख..

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