sathi_mero भैया,
आपने उपर जो लिखा वह आपका धारणा था, लेकिन दुसरेबार तो आप बहुत हि m.o.t.h.e.r f.u.c.k.e.r कहेने लगा, हम भि वैसे हि लिखुँ क्या आपको, हिन्दी मे ? भारी पडेगा हाँ, केहेदिया है हमने, चेतावनी मत समझेगा, सुझाउ है सुझाउ । ऐसा गन्दी शव्दोँका गुलछररे उडाने से आपको किसि का भि सापोर्ट नहिं मिलने वाला । सान भैया का चेतावनी भि देख लिजिएगा ।
अच्छा, हम हिन्दी मेँ क्यूँ लिखने लगा, इस बात शायद आप जानते नहिँ है । अगर कोइ हिन्दी मातृभाषि हमारा हिन्दी देखेँ तो शायद वह हमारा ढेढसारी गलतियाँ पकडेगा । हम तो शिखारु हिन्दि लिखते है । हमारा उधर एक थ्रेड है जिसमे हमने हिन्दी सीखनेको ऐलान किया । बस वहि कर रहा हुँ । उससे पहेले हम भि खस पर्वते भासा हि लिखते थे, जिसको आपने बहुत शान से नेपाली भाषा कहते है, लेकिन हमारा थरुइ भाषा भि गैर नेपाली तो नहिँ है ना !!! फिर भि आप इसको नेपाली भाषा नहिँ कहेते है । है ना ? तो जब हम ने हिन्दी मै लिखने लगा, आपको मेहशुस हुआ कि नेपाली और गैर नेपालीका फासला कितना ज्यादा है । आपको जितना गुस्सा आएगा उतना हि आप इस फासलाको करीव से महेशुस करेगा । नेपाली होने पर भि हमे गैर नेपालीका दर्जा जो मिलरहा था उस पर हम सन्तुष्ट नहि है ।
शायद आपको फिर भि हमारा बात समझ मे नहि आएगा । हम पुछते है कि नेपाली साहित्यमे जो पुरस्कार दियाजाता है उसमे से क्युँ खस पर्वते साहित्य और साहित्यकार हि पुरस्कार कि हकवाला होता है ? क्या मैथिलि, भोजपुरी, थरुइ, तमाङ का साहित्य नेपाली साहित्य नहिँ है ? अगर खस पर्वते साहित्य को हि पुरस्कार देना था तो क्युँ उसको नेपाली साहित्य कहेकर दियाजाता है, नेपालीका मतलव खस पर्वतेका इकलौता भाषा कैसे बन जाति है ? कौन बनाया ऐसा बदनियत चलन ? यह बातका जवाफ आजतक हमे किसि ने नहि दिया है ।
भारतके उदाहरण देखो, अगर वह भारती साहित्य बोले तो, उसमे हिन्दी मराठी तेलगु भोजपुरी सभि आता है, अगर हिन्दीओँ को अलग पुरस्कार देना है तो वह हिन्दी साहित्य हि बोलेगा, हिन्दी उधर राष्ट्रभाषा होनेपर भि भारती साहित्य मै हिन्दी साहित्यका इकलौता अधिकार नहि है । हिन्दी और भारतीका बीच स्पष्ट पहिचान है । क्या उसमै से सिखने कि कोइ बात नहिँ है ?
दुसरा, आपको क्या लगता है हम नेपाल सम्बतका सापोर्ट कर नहिँ सकता ? क्युँ ? क्या नेवार लोग हि कर सकता है ? हम क्युँ कर नहि सकता ? किस ने आपको कहा नेपाल सम्बतमेँ नेवार के इलावा दुसरे का हक नहिँ है । हम तो जो भि मामले मै नेपाल लगाता है उसमे अपना हक दिखेगा वह साहित्य, भाषा, कला, सस्कृति, सम्बत जो भि हो । कोइ तमाङ संस्कृति बोले तो वह तमाङ का है, थारुका नहि है, लेकिन कोइ नेपाली संस्कृति बोले तो वह हमारा भि है, हमारा हक है उसमे । इस बातको नोट किजिएगा । अगर किसीको हमारा हक दावि मै आपत्ति है तो, उसको नेपाली मत कहेना । बात खत्तम । आप दशेरा (दशै) और त्यौहार को नेपाली पर्व मानते है, हाँ हम भि उसको हमारा पर्व मानते है । आप देवकोटाका साहित्यको नेपाली साहित्य मानते है तो वह हमारा भि है और उसको थरुइ मे अनुवाद करना आपका जिम्मेदारी है, अगर आपको इसमे आपत्ति है तो उसे खस पर्वते साहित्य कहिएगा ।
तिसरा, आपने हमको थारु सम्बत लानेको कहा । हमारा जानकारीमे कोइ थारु सम्बत नहि है, अगर कोइ इतिहासकार ने थारु सम्बतके बारेमे बतादेगा तो हम उसपर जरुर अध्ययन करेगा । लेकिन हमारा कूल मे भि अमावस्या और पूर्ण चन्द्रका विशेष महत्त्व है । हमारा उस मान्यता के आधारमे चलनेवाला एक कालेण्डर है और वह नेपाल सम्बतके मुताविक है, यह बात हमे बाद मै मालुम पडा । हमारा मानना है कि भगवान वुद्ध हमारा पुर्वज है और एक थारु है, लेकिन बहुत लोग उन्हे शाक्य कूलका मानता है जो हाल मै नेवार लोग है । यह वातके पुरे जानकारी हमारा पास नहि है । अगर नेपाली लोग भगवान बुद्धको थारु माननेको तैयार होगा तो हम बुद्ध सम्वतके वकालत करने को तैयार है । लेकिन हाल तक जितना हम जानते है हमारा फर्स्ट च्वाइस तो नेपाल सम्बत हि है ।
अगर आप वर्ल्ड और फ्यूचर टेक्नोलाजि मै इन्ट्रेस्ट है तो यह कालेण्डार के विवाद मे क्यूँ पैर डाल्ने का ? वैसे भि हमे मालुम पडगया कि आप तो इस मै कोइ जानकारी हि नहि रखते है । आप तो बस एक वाइसियल कि तरह व्रेनवाश्ड है और तालेवान कि तरह विक्रम सम्बतका समर्थन नहिकरनेवाले लोगका विरुध फतवा जारी करनेको भि राजि है । लेकिन इतिहास वर्तमान और भविष्यका अध्ययन करनेवाले लोग यह सम्वतका विवाद मै बहुतकुछ डुवता है । वह वाइसियलकि तरह नहि होता है । नहि तो उपर हमने लिखा जो विद्वान इतिहासकार लोगों ने वरसौँतक इस मुद्देमे क्यूँ अनुसन्धान किया होगा । बात इहाँ है ।
चोर भैया,
लगता है आपका गुस्सा ठण्डा हो गया । हमारा मानना है कि, संसार मेँ अधिक उपयोग होनेवाले किसि भि भासा मै दख्खलवाजि करने से कोइ नुकसान नहि है । जैसे कि आप अँङ्ग्रेजि मै जानकार है, चिनिया मै जानकार होँगे तो बढीया होगा, आप अमेरीका मै है तो स्पानिस सिखिएगा बढीया होगा, यूरोप मेँ जर्मनी, फ्रेन्च सिखने का भि फायदा हि है । पुर्व जाना है तो जापानी सिखियगा, दक्षिण जाना है तो हिन्दी सिखिएगा । नेपाली लोगो ने नेपालके अन्दर हि हिन्दीके लिए जोर जोर से लविङ कर रहा है । हम उन लोगोको नेपाली नहि मानते है, क्यूँ कि आधि करोड भारतीय लोग जिसने माओबादी, काँग्रेस एमाले फोरम के मिलेमतो मै नेपाल कि नागरीकता हासिल किया, वह नेपाली नहि था । फिर भि नेपाल सरकार और आप लोग तो उनको नेपाली हि मानबैठा है । हिन्दि को समर्थन विरोध कर्नेवाले लोग करते रहेगे, लेकिन आप हिन्दी नेपालमे प्रचार और उपयोगि हो हि नहि सकता - इस बातको ग्यारेण्टी कर सकते है ? नहि ना ?? तो हमने थोडा हिन्दी प्राक्टीस कर लिया, इसमे कौन सा पहाड गिरा रे ? कल हिन्दी हमारा देश मै ज्यादा लोग बोलेगा, देखो, अभि भि यह नम्बर दो बन चुका है, और बहुत हि जल्दी नम्बर १ हो जायेगा यह मेरा अनुमान है । हम ने नेपाली सिखने मै ढीलाइ किया और उसके मार हमको अभि तक पड रहा है, कल हिन्दी मे कमजोर हो कर दुसरे बार हमे क्युँ मारे खाने का ? क्या आपके पास जवाब है ? आज लोकसेवा मै नेपाली चल्ता है, कल हिन्दी चलेगा, जब देशका सारा नेता लोग भारतीय दूतके इशारा पे काम करता है तो हम तो बहुत कमजोर साधारण लोग क्या खाक कर सकता है ? अगर आपको इस विषयमै हमारा विचार डिटेल जानना है तो पुराने थ्रेड पढलिजियगा ।