Posted by: Rahuldai August 1, 2008
~ चौतारी १२४ ~
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मोहब्बत् से नहि तो नफरत् से हि सहि।।
कभि तो लिजिये आप् मेर नाम् हि सहि

हर् पेहलू-ए-खुशी- ओ-रन्ज देख लिया,
दुनिय में चार् रोज् कयाम् हि सहि

दे दे साकिय कुच् दिल बेह्लाने को।।
भरा नहिन् तो खालि जाम् हि सहि

जो जुबानि आपकि है सर् आँखों पे है,
अगर् नहि लफ्ज्-ए-इनायत् दुश्-नाम् हि सहि

मान आपने रकीब के नाम जिन्दगी कर् दि
मेरे हिस्से में भि कुछ हो, एक शाम हि सहि

आये है तो कुछ बतलाके जाइये साहिब,
अपना पता नहि तो अपना नाम हि सहि

 

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