Posted by: Rahuldai July 24, 2008
~ चौतारी १२३ ~
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चिंगारी कोइ भड्के तो साउन उसे बुझाए
साउन जो अगन लगाए उसे कौन बुझाए
पतझड जो बाग उजाडए वो बाग बहार खिलाये  
जो बाग बहारों मे उजडे उसे कौन खिलाये


हम से मत पुछो कैसे मन्दिर टुटा सपनों का
लोगों कि बाट नहीं है यहाँ किस्सा है अपनों का
 दुश्मन ठेस लगाए तो मीत जिया बाहलाये
मनमित जो घाऊ लगाए उसे कौन मिटाए


ना जाने क्या हो जाता , जाने क्या कर जाते
पिते है तो जिन्दा रहते ना पिते तो मर जाते
दुनियाँ जो प्यासा रखे तो मदिरा प्यास बुझाए
मदिरा जो प्यास लगाये उसे कौन बुझाए।

माना तुफ्यान के आगे नही चलता जोर किसी का
मौजोंका दोष नहीं है ए दोष है और किसी का
मजह्धार मे नैया डोले तो माझी पार लगाये
माझी जो नाव डुबोये तो उसे कौन बचाए
 
 
एक एक शब्द को अर्थ मिलियन डलर को छ। गीत लेख्नु गाउनु अनी संगित भर्नु त यस्तो।

 

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