Posted by: ritthe July 22, 2008
~ चौतारी १२३ ~
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>>>हाहाहा बिचरा रिट्ठे! मायुस मत रो रिठे काणा तेरा भि दिन आने कु है! बोले तो अख्खि मुम्बइके आइटमलोग तेरेकु मिलनेको है!<<<

 

अख्खि मुम्बइके आइटमलोग नही चाहिये रे जिम्माल -- बोले त अप्पुन लंगडे के माफिक पाचास पाचास पाजिँसन अप्ना सर पे लेके नही चल सकता रे ! अप्पनको त बस वहिच चहिये वो अप्पन वाली !

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