Posted by: Rahuldai June 24, 2008
~चौतारी १२०~
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गुलाम अली को गजल , यो गजल बिना कहाँ हुन्छ र।


चुप के चुप के रात दिन आशु बहाना याद है,
हम को अब तक आशिकिका वो जमाना याद है।

पार्ट १

पार्ट २

 

 

 

 

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