Posted by: ritthe June 17, 2008
~चौतारी ११९~
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मंगलवार गन्नु माहात्मय अनी दीप हठेला आइ मिन दीप जी --- आज दीप जी को गन्नु पुराण आएन भनेको त भर्खर आ वा मार्फत आएछ ! ल पढम !

गन्नु: सुन बे लोल, नाम बदल डाल अपना -- तु नेपाल से है ना?

जिम्माल: हाँ हैं तो नेपाल से ही --पर नाम बदलनेका चक्कर क्या है प्रभो?

गन्नु: सुना है feudal लोगोंको छोड नही रहें है उधर -- कायम मुकायम राजाको भि जंगल भेज दिया --

जिम्माल: उसे हमे क्या फर्क पडता है? हम तो कोई feudal नही हैं--

गन्नु: तो फिर काहेका जिम्माल है रे तु? आगया ना अपने औकात पे?-- तो असल मै तु बस बिर्खे है बिर्ख फोकटी--

जिम्माल: फोकटी नही बोगटी है माईबाप--

गन्नु: फोकटी नही है रे? गोजीमै दो कौडी नही - काहेको सिलबाया था रे पाकिट अगर रखने को कुछ नही है तो? फोकटलाल के सर्दार है ना तु- दोनो गोजिऔं मै भ्वाङ्ग है-- काहेके लिए रे?

जिम्माल: आपको कैसे पता कि हमारे गोजीमै भ्वाङ्ग है?

गन्नु: हम त्रिकाल दर्शी है --तिनों लोकोंमै कुछ भी नही जो हमसे छुपा हो –

जिम्माल: दुनियाँ तरुनीऔंसे भरा पडा है और यह तिनों लोकोंमै और त्रिकाल मै आपको बस मेरे गोजिमै हुवे भ्वाङ्ग नजर आए?

गन्नु: लेकिन भ्वान्ङ बनाया किसलिए है रे?

जिम्माल: वह तो शादी से पहले बनाया था--
गन्नु: क्यों?

जिम्माल: छोडो ना पुरानी बातों मै क्या रखा है -- वैसी भि आप तो धोती पहनते हो --

गन्नु: तो?

जिम्माल: लोल! कुछ समझते नही हो प्रभो आप -- आप बर्मचारी और हम तरुनी के कर्मचारी -- छोडीए माईबाप---कुछ और बात करते हैं लेकिन अगले सप्ताह--

Last edited: 17-Jun-08 03:42 PM
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