Posted by: serial June 3, 2008
चौतारी - ११७- भौते, चित्रे र ठुलीको खोजीमा
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ल यो शायरी है।


जब से हुआ हैं वोह ख्वाब कि तरहा
जिन्दगी गुजर रही है अजब कि तरहा
खुश्बु के कलम से शायद लिखा था उस्ने खुद
हर लफ्ज महक रहा है गुलाब कि तरहा ।।

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