Posted by: ritthe June 3, 2008
चौतारी - ११७- भौते, चित्रे र ठुलीको खोजीमा
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लो कर्लो बात् ! छोडदिया ना 'तारेमाम' यहाँ पर ! ऐसेच बोलनेका था ना राहुलभाय,

"ओहे काणे तेरे दिमाग मी जुस के बद्लेमे भुस भरले क्या? तारेमाम "


चल् चल् धन्दे कि बात कर !

>>>ओह लंगडा बचपन मे खो गाई रेले, तभी सि उमर पचपन्न भिर भि बचपन माफिक  रेले। <<<

अप्पन के भेजे पे अब घुस्रेएला कि लंगडेको उसका फौरन दोस्त सब काइकु 'व्हाट'स अप गाई?' बोलरेएला था उश दिन !
अब समझ मै आगएला है कि लंगडे गल्ती से आदमी वाला गैङ मै आगया !

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