Posted by: ritthe June 3, 2008
चौतारी - ११७- भौते, चित्रे र ठुलीको खोजीमा
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>>>रिठे काणा- " भाई वो रस करके रंगका उस्ताद तो पहलेइच से था पन अब कोइ गालि वालि देनेवाले गैंगका भाइ बनगेला है!"<<<

>>>गन्नुभाई- "हाँ अब ठिक है, बोल् किता बडा बनगेला है वो बिना गोटिके कैरम?"<<<

>>>रिठे काणा- " भाई वो चौतारी गलीसे अपुन सबको उठाके लायेंगा भाई, पन वो बसन्तीको छोड दो ना भाई!"<<<


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