Posted by: ritthe May 28, 2008
चौतारी - ११७- भौते, चित्रे र ठुलीको खोजीमा
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>>>त हमि सोचेँ कि बुरबक कुछ बुझे छेन त बुझावनेको तयारि करेथिएँ, पर सुसरा हमरो कनपटीमे वार कियो।<<<

ग् ग्ग्ग ग् ग्गग् ग्गग् ग्ग.......... गन्तान्त्रिक हसाइ

ल पहिलो सन्ध्याकालिन गनतान्त्रिक शुभ सन्ध्या

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