Posted by: Birkhe_Maila May 13, 2008
~ चौतारी- ११५ ~
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गन्नु माहत्म्य सुरु गर्ने दीप त मुग्लान तिर पसे के रे! मैले माथि लेख्या चाहि साँच्चिके गन्नुभाई( गुन्डा दादा चाहिँ) भए कस्तो कस्तो होला भनेर। तर दीपले सुरु गरेको चाहिँ हाम्रा गनपती गन्नुभाई हुन त्यसैले  दीपबाट  यस्तो जान्थ्यो-

गन्नु: क्यों रे जिम्माल, किसिने तेरेको सपनेमैं फाँसी दिया क्या?

जिम्माल: नहीँ माईबाप।

गन्नु: तो फिर मुहँ क्यो लट्का हुआ है रे?

जिम्माल: आप ही कि पीर मै उदास हुँ बोस

गन्नु: क्यों? ऐसा क्या हुवा बे?

जिम्माल: लोल! जहाज डुब रही है, और आप पुछते हैं क्या हुवा?

गन्नु: सुन बे लोल, हम जहाज के बेपार मै नही हैं -- यह कमलादीमै काहेका जहाज, काहेका समुद्र? कहाँ देखा रे तुने जहाज? कमलपोखरी मै? या नागपोखरी मै? कहीँ रानी पोखरी मै तो नहीँ देखा? मत कहे कि पानीपोखरीमै --वहाँ तो बर्षौ सें पानी नही है--वह तो पोखरीके नाम पर कलंक है -- फिर जहाज --

जिम्माल: बस करो माईबाप, आप तो जी जान से जहाजकी पिछे लग गये -- मै वैसे जहाज कि बात नही कर रिया हुँ --

गन्नु: तो फिर कैसे जहाजकि बात कर रिया है? हवाई जहाजकि?

जिम्माल: माईबाप, मारो गोली जहाजको, मै तो --

गन्नु: खामोश! क्या समझा बे तु मेरेको? आतकंबादी? क्यों मारुं रे मै गोली जहाजको? मै तो शान्तीका प्रतिक हुँ --

जिम्माल: यह लो, कल तक तो आप डिम्पलके प्रतिक थेँ रातौं रात शान्ती के हो गए? आप बर्मचारी हो बोस, लडकियों से दुर ही रहो त अच्छा है--

गन्नु: क्या जमाना आ गया रे -- अब जिम्माल हमको ज्ञान बांटेगा? -- कहाँ है रे मेरा बन्चरो - द कुल्हाडी?

जिम्माल: त्राहीमाम! प्रभो।

गन्नु: तु ने वह जहाजकी बात काहेको छेडा रे?

जिम्माल: मै तो यह कहने जा रहा था माईबाप कि हमारा धन्दाका क्या होगा? दो कमाण्डर है आपके --एक काणा है और दुसरा लंगडा -- काणेको आधा तो दिखता नहीँ जब तक उसे कुछ देखाई दे बात बहुत आगे जा चुकी होती है -- उतनी दुर जाके उस बातको पकडेगा कौन? लंगडा? एक तो लंगडा है उपर से शराबी -- एसे मै धन्देका जहाज डुबेगा नही तो और क्या होगा? ... कुछ सोचो बोस कुछ करो -- हमारे आँखें देखो पैर देखो सब दुरुस्त है --इधर् देखो-- सिक्स प्याक है माईबाप सिक्स प्याक --
गन्नु: सिक्स प्याक है? तो पहले क्यो नहीँ कहा रे लोल्? चल निकाल एक ट्वाक् इधर दे --


 

Last edited: 13-May-08 03:14 PM
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