Posted by: Rahuldai May 9, 2008
~ चौतारी- ११४ ~
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कभि आँसू कभि खुशि बेचि
हम् गरिबों  ने बेकसि बेचि

चंद साँसे खरीद्ने के लिये
रोज् थोडि सि जिन्दगि बेचि

जब् रुलाने लगे मुझे साये
मैने वक्त  के रोशनि बेचि

एक् हम् थे के बिक् गये खुद् हि
वरना दुनिया ने दोसति बेचि

 

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