Posted by: Birkhe_Maila April 29, 2008
~चौतारी - ११२~
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गन्नु भैया: अबे फिर से आ गया?

रिट्ठे:  हांजि माइ बाप!

गन्नु भैया: फिर काहे कु आया रे? अ बे कुछ तो शरम कर निचेका दुकान खुला है!

रिट्ठे: वो माइ बाप जो कट्टु आप ने दिया था उसका नाडा गायब है!

गन्नु भैया: अबे बिन नाडे कि कट्टुसे तो दुकान खुलेगा हि, कौन ले गया रे नाडा?

रिट्ठे: माई बाप, वो आपने बिन नाडे कि कट्टु भिडा दि मुझको!

गन्नु भैया: अबे  मेरे पास जो था वहि दिया है, अब नाडा किधर से लाउँ?

रिट्ठे: पर माई बाप आपके पास बिन नाडे कि कट्टु किधर से आया?

गन्नु भैया: अबे वो मेरा नहिँ है, वो तो मेरा बाप शंकरिया उतार के गया था!

रिट्ठे: तब तो हम यहिच कट्टु पहनेगा माइ बाप, शंकर छाप कट्टु!

 

((((((((((((ध्यानट्यार्यान.....ढुकचुक ढुकचुक...ध्यानट्यार्यान))))))))))

आप भि पहने , दुसरोँ को भि पहनाइए, शंकरछाप कट्टु, नाडा बाँधने कि जरुरत हि नहिँ!

टुंगsss।।।।।

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