Posted by: SadhanaSharma November 19, 2007
गुच्चा खेल्न मन लाग्यो!
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यो कविता पढेपछि मैलेपनि मेरो बालापनका ती सुन्दर, निश्फिक्रि दिनहरु सम्झिएँ अनि जगजित सिंहको एउटा गजलपनि

" वो नानी कि बातों में परियोंका डेरा, 

वो चेहेरेकि झुर्रियोंमें सदियों का फेरा,

 भुलाए नहीं भुल सकता है कोइ ,

वो छोटी सि रातें  वो लम्बी कहानी ..... "

Last edited: 19-Nov-07 02:20 PM
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