Posted by: Rahuldai October 31, 2007
~~चौतारी - ८४~~
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जय राम जी के मदनवा! हमरी तारेमाम पनि स्विकार लिनुस्।
एकथो शायरी हमरो डायरी मे थ्यो हजुर्, सुनी लिनुस्, पान चवाके।


हम जैसे तन्हा लोगों को अब रोना क्या हसजाना क्या
जब चाहनेवाले कोही नहीं फिर जिना क्या मरजाना क्या।

वाह्! वाह्!  भनि लिनुस् हजुर्, दिल खुश हुन्छ।

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