Posted by: Madness October 29, 2007
~~चौतारी - ८४~~
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आँशु भरि है ये जीवन कि राहेँ

कोहि उनसे कह दे हमे भुल जाए

बरबादियोँ कि अजब दासता हुँ

शबनम भि रोए मै ओ आशमा हुँ

उन्हे घर मुबारक हमे अपनि आहें

कोहि उनसे कह दे हमे भुल जाएँ

 

जे राम जि कि।

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