Posted by: serial October 26, 2007
** चौतारी ८३ **
Login in to Rate this Post:     0       ?        
काश समाजहते वो ईस दर्द्-ए=दिल कि टदप को
तो इ्उ ना हमे रुशवा क्या होत,
उन्की ए बेरुखी भि मन्जूर ठि हमे,
बस एक बार पलत कर टो डेखा होता
Read Full Discussion Thread for this article