Posted by: Madness October 22, 2007
** चौतारी - दशैं विशेष-३ **
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हम्रो गना कबिताके शिर्सक छे- "पुनटे बुह्रा"

 

बिताइहालेछ अफ्नो जवानी पुरा का पुरा

बुह्रापेपे जवान बनके हँसावँछ पुनटे बुह्रा

लभ करनेको बहुते अस्टाइल जानेछ सुसरा

आँख पे बतियाइके दिलपे सिधा मार्छ छुरा

पर के करने बेचारा जवानी सकिहालेछ उसके

सरपे सला बाल रहेन जवानिमे घिस घिसके

जोश जगँरवा लियावनेको बादाम खान्छ पिसके

बुह्रापे भि बिताइदिन्छ इन्तजार करके 'किस' के

खेँ.. खेँ ..खेँ...

जे राम जि कि।

 

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