Posted by: Mitra 2 October 22, 2007
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दीपको अर्को भाग नआउन्जेल यै गीत सुनेर बस्नु पर्ला जस्तो छ। बरु कथा सक्किन लाग्या हो कि भनेर मन पो खिन्न भैराछ।
राज की बात है महफील में कहे, या ना कहे
बस गया है कोई, इस दिल में कहे, या ना कहे
निगाहे मिलाने को, जी चाहता है
दिल-ओ-जां लूटाने को, जी चाहता है
वो तोहमत जिसे इश्क कहती है दुनियाँ
वो तोहमत उठानेको, जी चाहता है
किसी के मनाने मे, लज्जत वो पायी
के फिर रुठ जाने को, जी चाहता है
वो जलवा जो ओझल भी, है सामने भी
वो जलवा चुराने को, जी चाहता है
जिस घडी मेरी निगाहों को तेरी दिद हुयी
वो घडी मेरे लिये ऐश की तमहीद हुयी
जब कभी मैने तेरा चांद सा चेहरा देखा
ईद हो या के ना हो, मेरे लिए ईद हुयी
वो जलवा जो ओझल भी, है सामने भी
वो जलवा चुराने को, जी चाहता है
मुलाकात का कोई पैगाम दिजे
के छूप छूप के आने को जी चाहाता है
और आके नाजाने को जी चाहता है
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