Posted by: Rahuldai October 11, 2007
** चौतारी - दशैं विशेषांक **
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कोइ दिवाना कहता है, कोइ पागल सम्झता है,
मगर धरती के बैचनीको बस पागल सम्झता है।

मे तुझ से दूर् कैसा हुं, तु मुझ से दूर् कैसी है।
येह् तेरा दिल समझता  या मेरा दिल सम्झता है


 

मोहब्बत एक एहसासों कि पावन सि कहानी है,
कभि कबिरा दिवाना था, कभि मीरा दिवानी है।

यहां सबलोग कहते है मेरी आँखोमे आँशु है,
जो तु सम्झे तो मोती है जो न सम्झे तो पानी है।

समानदर पीर के अन्डर है लेकिन रो नही सकता,
यहाँ आशुं प्यार का मोतीहै इसको खो नही सकता।

मेरी चाहत को दुल्हन तु बना लेना, मगर सुन ले, 
जो मेरा हो नही पाया, वोह् तेरा नही हो सकता।

मे तुझ से दूर् कैसा हुं, तु मुझ से दूर् कैसी है।
येह् तेरा दिल समझता  या मेरा दिल सम्झता है

 
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