Posted by: PallaGhareAntare October 10, 2007
** चौतारी - दशैं विशेषांक **
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यह रात है... यह तुम्हारी जुल्फेँ खुली हुई हैँ
है चाँदनी या तुम्हारी नजरोँ से मेरी रातेँ धुली हुई हैं
यह् चाँद है... या तुम्हारा कंगन
सितारे हैँ या तुम्हारा आँचल
हवा का झोँका है
या तुम्हारी बदनकि खुश्बु
यह पत्तियो कि है सरसराहट
या चुपके से तुमने कुछ कहा है

यह् सोचता हुँ मैं कब से गुमसुम
कि जब मुझको भि यह खबर है
के तुम् नहिं हो.... कहिं नहिं हो
मगर यह् दिल है कि कह रहा है
तुम यहिँ हो यहिं कहिं हो

मैँ और मेरी तन्हाई
अक्सर यह बातें करते हैँ

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