Posted by: Birkhe_Maila July 27, 2007
~~चौतारी - ६४~~
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अरे मुन्निया क्या बोलति तु? अरे ऐसे बोलोगि तो सबकि बाट लगा डालोगि!तब तो एडे लोग भि सुधरजाएङ्गे!एडे बोले तो सयाने लोग क्या? अभि अपुन अपनि खोलिमे जाएङ्गा क्या? चुपचाप बैठनेका ईधरइच मिलता हुँ, अबि एक सेठको खर्चा पानि देनाका है अपुनको क्या? लोल! दुर्गे माता! आखिर आलुको अचारले रसबरि तान्दोरहेछ भन्ने आज चेतना भया!! अब हेरि तो जाबो रसबरि त यो गिजाले छुन नि पर्दैन गाँठे! सिधा जिब्रोले चपाएर निलिनिन्छु!
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