Posted by: CaMoFLaGeD June 4, 2007
--चौतारी-५७--
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एक लरकि के फेस दिमाग से भागेन पुरे रात भर हमिलाई निंद लागेन हटियामे देखेँ उसको निलो मिड्डीमा दिमाख नै गएन हमरे हाथके बिडीमा बिडी देखिलियो ससुरि बोल्नै मानेन पुरे रात भर हमिलाई निंद लागेन बिडी छुटाउने लाई खाएँ पान सुपारी हमरे लाल दाँत देखेर उ अनुहार बिगारी दतिवन घोटेँ जोर से ससुरि रङ भागेन पुरे रात भर हमिलाई निंद लागेन जे राम जि कि।
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