Posted by: khabardar March 29, 2007
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जति यो गजल् सुन्यो, तेत्ति नै मिथो लाग्छ।। जगजित् का गजल् हरुमा सबै भन्दा राम्रै येइ नै लाग्छ। कति सटिक् छ।।
उम्र जलवों में बसर हो, ये जरूरी नहीँ
हर शबे गम कि शहर हो, ये जरूरी नहीं!!
चश्मे शाकी से पियो, या लब्-ए सागर से पियो,
बेखुदी आठओं पहर हो, ये जरूरी नहीँ । ।
नींद तो दर्द के बिस्तर पे भि आ सकती है,
उन्कि आगोश् मे सर् हो ये जरूरी नहीँ।।
शेख करता है यहाँ मस्जिद में खुदा को सजदे,
उस्कि सजदों मे असर हो, ये जरूरी नहीं।।