Posted by: John_Galt March 3, 2007
Soooo Happy - Finally I found
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चुपके चुपके रात दिन (गुलाम अली) का दुइ विशेश अंतरा हरु आगया गर वस्ल की सब्भी कहीं जिक्रे फिराक, वो तेरा रो रो के भी मुझको रुलाना याद है वस्ल = मिलन सब्भी = साँझ फिराक = बिछोड (ठेट उर्दू, हिन्दि मा 'खोज' हुन आउंछ) वक्ते रुख्सत अलविदा क लफ्ज कहने के लिये वो तेरे सूखे हुए लबों का थरथराना याद है Thanks simplegal, that is a great song too....
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