Posted by: John_Galt February 26, 2007
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To khabardaar and simplegal
ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ, सुन जा दिल कि दास्ताँ
पेडों कि शाखों पे सोइ सोइ चाँदनी, पेडों कि शाखों पे
तेरे खयालों मे खोइ खोइ चाँदनी
और थोडि देर मे थक के लौट जाएगी
रात ये बहार की फिर कभी न आएगी
दो एक पला और् है ये समाँ, सुन ज दिल कि दास्ताँ
लेहरों के होठों पे धीमा धीमा राग है, लेहरों के होठों पे
भीगी हवाओं में ठंडि ठंडि आग है
इस हसीन आग में तू भी जलके देखले
जिन्दगी के गीत की धुन बदल के देखले
खुलने दे अब धड्कनों की जुबाँ, सुन जा दिल की दास्ताँ
जाती बहारें हैं उठी जवानियाँ, जाती बहारें हैं
तारों के छावों में पेहले कहानियाँ
एक बार चल दिये गर तुझे पुकारके
लौटकर न आयेगें काफिलें बहार के
आजा अभी जिन्दगी है जवाँ, सुन ज दिल कि दास्ताँ