Posted by: John_Galt February 25, 2007
Soooo Happy - Finally I found
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एउटा गजल हाम्रो तर्फ बाट पनि रन्जिश् ही सही - मेंहदी हसन रन्जिश् ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड के जाने के लिए आ रन्जिश् ही सही पहले से मरासिम् न सही फिर भी कभी तो रस्म-ओ-रहे दुनिया ही निभाने के लिए आ रन्जिश् ही सही किस् किस् को बतायेंगे जुदाई का सबब् हम तू मुझसे खफा है तो जमाने के लिये आ रन्जिश् ही सही कुछ् तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत क भरम रख् तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिये आ रन्जिश् ही सही एक उम्र से हूं लज्जत-ए-गिरिया से भी महरूम ए राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिये आ रन्जिश् ही सही अब तक दिल-ए-खुश्फहम को तुझसे है उम्मीदें ये आखिरी शम्में भी बुझाने के लिये आ रन्जिश् ही सही माना कि मुहब्बत का छिपाना है मुहब्बत छुपके से किसी रोज जताने के लिए आ रन्जिश् ही सही जैसे तुझे आते हैं न आने के बहाने ऐसे ही किसी रोज न जाने के लिये आ रन्जिश् ही सही
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