Posted by: khabardar February 24, 2007
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यि गीत हरू मा म मेरा पुराना बिम्ब हरु देझ्छु। प्रेम् मा घात् परेर राति को दुइ बजे तिर काठमान्डु को भिम्सेन् थान् देखि एकलै असन् हुँदै दिल्लिबजार् पुगेर फर्कन्थे। बातो मा चकमन्न हुन्थ्यो, एउता मानिस् पनि देखिदैन थ्यो।। खलि भुस्याहा कुकुर् हरु जता ततै हुन्थे।। काथ्मान्डु अर्कै थ्यो।। तेति बेला मा असन् को अन्नपुर्ण मन्दिर् मा कैले काहिँ एउता मान्छे एक्लै बसेर "तुम बिन् जिवन् कैसे बिता" र "मन रे तु काहे न धीर धरे" गाउथ्यो।उस्को स्वर् येति मिठो थियो कि भनेर साधे छैन।। बिचरा म जस्तै प्रेम् मा घायल् भयेको होला। कहिलै पनि परिचय गरीन।। सार्है नै मन् पर्थ्यो उस्ले गायेको।। घोच्थ्यो तेस्को गीत् ले।।मलाइ अहिले यी गीत् हरु पुरा आउदैन तै पनि गुङुनै रहन्छु अनि तेति बेला तेहि बिचरा सम्झ् मलाइ अहिले पनि त्यहि सम्झना आउन्छ। कहा होला त्यो मान्छे ऐले!
कसै लाइ यो दुइटा गीत् पुरा आउँछ भने लेखि दिनुस् न है।।।
मुझे तूम से कुछ भी ना चाँहीए,
मुझे मेरे हाल पे छोड दो, मुझे मेरे हाल पे छोद दो,
मेरा दिल् जले तो ये दिल् नहिं
इसे सब के सामने तोडदो
इसे सब के सामने तोडदो
मुझे तुम् से कुछ भि ना चाहिये
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आप् कि नजरोँ ने सम्झा
प्यार के काबिल् मुझे
दिल् कि ये धडकन् ठेहेर् जा
मिल् गयी मन्जिल् मुझे आप् कि नजरो ने सम्झा
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मन रे तु काहे न धीर धरे
वो निरमोही मोह् न जाने
इस जीबन् कि चढती बढती?
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रङ पे किसने चेहेरे दाले
रूपको किसने बान्धा
चाहे तो जतन करे
हो मनरे तु काहे न धीर धरे
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तुम बिन जिवन कैसे बिता पुछो मेरे दिल से
हाये पुछो मेरे दिल् से
प्रेम् का सागर् हाये
चारो तरफ् लहरीये
जितना आगे जाउं
गेहरा होता जाये
गम् के भवर् मे क्या क्या दूबा
पुछो मेरे दिल् से
हाये पुछो मेरे दिल् से
तुम बिन् जिवन् कैसे बिता
पुछो मेरे दिल से
हाये पुछो मेरे दिल से....