Posted by: Felicity February 7, 2007
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BY जयकृष्ण राय तुषार (from BBC)
नए साल की उफ!
कितनी तस्वीर घिनौनी है
वही सभी शतरंज खिलाड़ी
वही पियादे हैं
यहाँ हलफनामों में भी
सब झूठे वादे हैं
अपनी मूरत से मुखिया की
मूरत बौनी है
गेहूँ की बाली पर बैठा
सुआ अकेला है
कहा सुनी की मुद्राएँ हैं
दिन सौतेला है
फिर अफवाहों से ही
अपनी आँखमिचौनी है
आँगन में बँटकर
तुलसी का बिरवा मुरझाया
मझली भाभी का दरपन सा
चेहरा धुँधलाया
मछली सी आँखों में
टूटी एक बरौनी है
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