Posted by: Nepal ko chora January 7, 2007
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दाजु-बहिनी को कबितामय दोहोरी पो चल्दै रहेछ यहा। अरु पनि जाओस बरु।
म चाही मेरो सायरीमय मुडलाइ निरन्तरता दिदै एउटा अर्को टुक्रा पस्किदै छु।
जुबान खामोश और आखोन मे नमी होगी,
यही बस एक दास्तन-ए-जिन्दगी होगी,
भर्ने को तो हर जख्म भर जाएगा
कैसे भरेगी वो जगाह जहा तेरी कमी होगी।