Posted by: Birkhe_Maila January 5, 2007
चौपारी-२००७
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हन के कुरो अरेकि हुन यिनि डाउडरनि नानि ले! काँ पा'र जाँड खानु नि मुइँले! बरु बुडेसलाकाँ धुमधुम्ति बसेर गुनगुनाईरा म त! कइँ बार युँ हि देखा है ये जो मनकि सिमा रेखा है मन तोडने लगता है अन्जानि प्यासके पिछे अन्जानि आँखके पिछे मन दौडने लगता है राहोँमे राहोँमे, जिवनकी राहोँमे जो खिले है फूल फूल मुस्कुराते कौन सा फूल चुराके रख लुँ मै सजाके जानुँ ना जानुँ ना, उल्झन ये जानुँ ना सुल्झाउँ कैसे कुछ समझ ना पाउँ किसको मित बनाउँ, किसकि प्रित भुलाउँ
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