Posted by: Birkhe_Maila December 21, 2006
-- चौतारी ३८ --..
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तारेमाम राहुल दाई! सुन्दा सुन्दा मन नै कस्तो कस्तो भएर आयो! कहिँ दुर जब दिन ढल जाए सांझ कि दुल्हन बदन चुराए चुपके से आए मेरे खयालोँ के आंगनमे कोहि सपनोँ के दीप जलाए कभि युँ हि जब हुइ बोझल सासेँ भर आई बैठे बैठे बस युँ हि आखेँ कभि मचलके प्यार से चलके छुए कोहि मुझे पर नजर न आए नजर न आए कहिँ तो ए दिल कभि मिल नहिँ पाते कहिँ से निकल आएँ जनमोँ के नाते घनि थि उलझन बैरि अपना मन अपना हि हो के सहेँ दर्द पराए दर्द पराए दिल जाने मेरे सारे भेद ये गहरे हो गए कैसे मेरे सपने सुनहरे ये मेरे सपने यहि तो है अपने मुझसे जुदा न होंगे इनके ये सायेँ इनके ये सायेँ कहिँ दुर जब दिन ढल जाए सांझ कि दुल्हन बदन चुराए चुपके से आए मेरे खयालोँ के आंगनमे कोहि सपनोँ के दीप जलाए
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