Posted by: vishontar August 16, 2006
Nepe's book on the web
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वाह! विष्णुअवतारजी! अल्फाजें चुनते चुनते बिते दिन, खयालौं मे खोते खोते रात बिते। हकिकतकी नजरों से देखा तो जिन्दगी महज इक गम निकला।। एउटा शेरले सम्पूर्ण गिता वर्णन गरेको जस्तो भयो! गजब छ! शुक्र है आपने लपेटी टालेको नही वल्की कोहिनुरको देखा। दिल खिलउठा! जो लब्जोंके अन्दर झांके ..पहेली वार ऐसा कोइ सक्श देखा।।
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