Posted by: Nepe August 7, 2006
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डा. कुँअर बेचैन का मलाई मन परेका केही दोहा र शेरहरु...
सज्जन का औ' मेघ का, कहियत एक सुभाय
खारा पानी खुद पिये, मीठा जल दे जाय
पानी पर कब पड सकी, कोई कहीं खरोंच
प्यासी चिडिया उड गई, मार नुकीली चोंच
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उगता सुरज सोच रहा है
सुबह उठेगी कब बिस्तर से
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बोया न कुछ भी ओर फसल ढूंढते हैं लोग
कैसा मजाक चल रहा है क्यारियो के साथ
सेहत हमारी ठीक रहे भी तो किस तरह
आते हैं घर हकीम भी बीमारियों के साथ
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यह मेरे पलकों का जादू है कि वो काजल बना
वर्ना कब आंखो को अपना घर बनाता है धुआं
इस धुएं के सिर्फ काले रंग पे मत जाइये
यह भी देखें रोशनी को साथ लाता है धुआं
यह किसी आंधी की साजिश है कि जिससे आज भी
एक पूरा जिस्म होकर थरथराता है धुआं
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घर में आंखो के कोई सीढीं न थी फिर भी 'कुंअर'
अश्क जाने कौन सी सीढी उतर कर आ गए
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दिल के अंदर जख्म बहुत हैं इनका भी उपचार करो
जिसने हम पर तीर चलाए मारो गोली बाबू जी
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दो चार हादसों से ही अखबार भर गए
हम अपनी उदासी की खबर काट रहे हैं
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