Posted by: Nepe February 3, 2006
MERO KABITA - "BHAUTE"
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अनि हरिवंशराय वच्चनको मधुशाला प्रतिको यो अनन्य प्रेम र भक्तिले पनि हृदयमा एउटा भूकम्प नै ल्याईदिन्छ ..... बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला, रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला' 'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे' मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९। मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला, मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।।८२। मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला, दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।८३। और चिता पर जाये उंढेला पत्र न घ्रित का, पर प्याला कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला, प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना पीने वालों को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।।८४। नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला, जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।८५। ___
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