Posted by: KaLaNkIsThAn January 23, 2006
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Here is another one by Jagjit... :P
बे-सबब बात बढाँनेकि जूरुरत क्या है
हम खाफा कब थे मनाने कि जूरुरत क्या है
आपके दमसे तो दुनिया क भरम है कायम्
आप जब है तो जमानेकि जूरुरत क्या है
तेर कूचाँ तेरा दर तेरी गली काफि है
बे-ठिकानोको ठिकाने कि जूरुरत क्या है
दिल से मिल्ने कि तमन्ना हि नहि जब दिल मे
हाथ से हाथ मिलाने कि जूरुरत क्या है
रंग आखो के लिए, बू है दमागो के लिए
फूलको हाथ लगानेकि जूरुरत क्या है
-- जग्जित सिङ्ग