Posted by: Bennedict July 9, 2021
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ईक तस्बिरको देखा तो ऐसा लगा,
छिपकली नही हैं, छिपी कोही कली हैं
साँवली सी सलोनी, कोही मृग-नयनी
ख्वाँबोमें खिलती ईक कच्ची सी कली हैं
बदनपें सिताँरे तो नहीं है लपेटे यहाँँ
हैं तो ईक फिटके दो छोटी सी कपडें
लाज तो छिपीं वो भी बहुत मुश्किलसे
पर छिप न सकी हैं तो कमर जो थे मैले
नजारा ऐसा देखा तो सोचता मै रहा गया
चाँद पैं दाग नहीँ यहाँँ तो कुछ और है मामला
ए चाँदपेँ फख्र करनेवाले, रुकके सोचो जरा
कहीँ पुरा चाँदका कमरा ही तो नहीं हैं मैला?
(हिन्दीमें बोल-बोलके क्या कहुँ, कबिता लिखनेको आ गया भई।)