Posted by: perfectionist November 16, 2009
~चौतारी १६४ ~
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कुछ कम् रोशन है रोश्नी
कुछ कम् गिली है बारीशेँ  
थम सा गया है
येह् वक्त अैसे
तेरे लिये ही ठेहेरा हो जैसे

रिट्ठे ब्रो, बिस्टे ब्रो लाई प्रणाम!

भाषाको पछी नलागम, भाव राम्रो लागेर राख्या है यो गीत!

बिस्टे काजी, मेरो त सप्ताह, केइ न केइ भो, बसियो, कम सुतियो। कोठा धरी सफा गर्न पा छैन। तिम्रा चाइने के कस्तो भो, फोटो-सोटो राख्नु नि
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