Posted by: Poonte March 7, 2012
आभा
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आभाको त के भनम, पर्भो...उनको भक्त सेवक पर्भो आफैं...हाम्ले दर्शन पाए नि पर्भो सम्झी एस्सो पन्छिदिन बाध्य छम...
तर, पस्पतिको दर्शन चैं ठ्याक्र्याक्कै पाएम आज! कुना काप्चा! पर्भोको स्मरण अपरम्पार! आज बुधबारै पनि...जय शम्भो! लु जा त!
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