Posted by: parikalpana December 25, 2007
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दुई लाइन अरु थप्ने दुस्प्रयास गरें
शिरिश जी लाई साथ न दि बस्न मन लागेन
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पोखियको जून जीन्दगी बिहानी पर्खि जिएं
मिर्मिरे को किरण हत्केला ले छोप्न् मन लागेन
तोड्दै तोड्दिन भनी तिमीले खायका कसम सम्झिंरहें
किन तोडेउ भनी सोध्न् पट्कै मन लागेन