Posted by: controversial April 29, 2015
INDIA helping Nepal's Quake Victims in her Own Unique Desi Style!!
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no hate here just the issue of efficiency and priorities .
"They want nepalese army and police to do it for them. But what do they do? Nothing. "
wow really? 95000 and more deployed , 1 helicopter doing 60/70 trips, videos speaks itself. give your brave countrymen due but if you are indian I understand.
paper tigering :) is and another old desi style. if no india, china is ready to give full support, they have said that and no, they are not the loudest. it's not like nobody around.
while indian paper are making issue whose dick is bigger china or india ? at this grim moment. wtf really

नेपाल की मदद करने में भारत से पिछड़ा चीन


इंद्राणी बागची, नई दिल्ली

नेपाल में आए भीषण भूकंप के कुछ ही घंटों के भीतर वहां बड़े पैमाने पर भारत की ओर से राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिए गए थे । भारत वहां किसी भी दूसरे देश की तुलना में व्यापक पैमाने पर बचाव और राहत अभियान में जुटा है। चीन, जो नेपाल में निवेश के मामले में भारत को 2014 में ही पछाड़ चुका है, अब मानवीय सहयाता के इस काम में भारत से कदम मिलाने के लिए संघर्ष कर रहा है।

नेपाल त्रासदी में भारतीय मदद काफी व्यापक है और यह तत्काल सभी क्षेत्रों में मुहैया कराई गई। पिछले कुछ समय में कई बड़े राहत अभियान (एशियाई सूनामी, लीबिया, इराक और हाल ही में यमन) चलाने की वजह से भारत की छवि मुसीबत के समय दोस्ती निभाने वाले देश की बनी है। लीबिया संकट के समय 2011 में चीन ने जहाज भेजकर संघर्ष वाले क्षेत्रों से अपने नागरिकों को निकाल लिया था। कुछ सप्ताह पहले युद्धग्रस्त यमन में भारत ने अपने 4 हजार नागरिकों के अलावा 32 देशों के लोगों को वहां से निकालने में कामयाब रहा था। दूसरी तरफ चीन ने एक बार फिर विमान और जहाज भेजकर अपने नागरिकों को निकाल लिया।

नेपाल में भारत और चीन की मौजूदगी भू-राजनीतिक लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि वहां की सरकार अपने बयानों में संतुलन बनाकर चल रही है और यहां तक कि जरूरत होने के बावजूद ताइवान की मदद को ठुकरा दिया है। चीन की सरकार नेपाल में भारत के साथ स्वाभाविक तुलना से बचना चाह रही है। पेइचिंग में एक सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, 'चीन और भारत नेपाल के पड़ोसी हैं। हम एक साथ वहां काम करना चाहेंगे और भारत के साथ सकारात्मक समन्वय बनाते हुए नेपाल को कठिनाइयों से निकलने और देश के पुनर्निमाण में मदद करेंगे।'

इसमें कोई आश्चर्यजन बात नहीं है कि भकूंप के बाद भारतीय राहत दल सबसे पहले नेपाल पहुंच गया था। भारत नेपाल के सिस्टम और वहां के लोगों से भलीभांति परिचित है। राजनीतिक कारणों से भी यह अपेक्षित था कि भारत मदद के साथ तेजी से पहुंचेगा खासकर तब जब वह यह चाहता हो कि चीन और माओवादियों को वहां जमने का मौका न दिया जाए। दरअसल, अगर भारत जो कुछ भी कर रहा है, वो नहीं करता तो आश्चर्य का विषय होता।

भारतीय सहायता का पूरे नेपाल में दिल खोलकर स्वागत किया जा रहा है, भारत भी अतीत के अनुभवों से बहुत कुछ सीखता हुआ दिख रहा है। हालांकि, भारत की इस दरियादिली का असर वहां लोगों के दिलो-दिमाग पर पड़ेगा या नहीं अभी इस बारे में कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है। नेपाल में निवेश के मामले में चीन भारत को 2014 में ही पीछे छोड़ चुका है खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर और पावर सेक्टर में। नेपाल-चीन का व्यापार भी पिछले कुछ समय भारत-नेपाल व्यापार से ज्यादा है।

तिब्बत के शरणार्थियों को लेकर नरम रुख की वजह से चीन काठमांडू की आलोचना करता रहा है, लेकिन मोटे तौर पर चीन की मौजूदगी का वहां स्वागत ही होता रहा है। संभावना यह भी है कि राहत कार्य खत्म होने के बाद पुनर्वास और पुनर्निमाण के काम में भारत से ज्यादा चीन की मौजूदगी दिखेगी। इस मामले में भारत का ट्रैक रिकॉर्ड कमजोर है और चीन का पलड़ा भारी है। तय समय में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स को पूरा करने में चीन की प्रतिष्ठा भारत से ज्यादा है। भारत पारंपरिक रूप से यहां कमजोर रहा है और इस मामले में अब तक बहुत कुछ बदला नहीं है।

अब तक केवल एक पड़ोसी देश अफगानिस्तान में भारत जमीन पर कुछ करके दिखाने में सफल रहा है। यहां तक कि म्यांमार में भारत गड़बड़ा गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नेपाल में भारत दूसरी कहानी लिख पाएगा?
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